Sh. Yoginder Singh Nehra

श्री योगिन्द्र सिंह नेहरा, भापुसे (सेवानिवृत)

पूर्व निदेशक, हरियाणा पुलिस अकादमी, मधुबन

A Brief Introduction

मेरा जन्म 5 फरवरी सन् 1961 एवं हिन्दु कैलेन्डर के अनुसार फाल्गुन माष की चतुर्थी विक्रमी संवत् 2017 को गाँव लहरियाँ तत्कालीन हिसार जिले में हुआ। बचपन में गाँव की हमारी पुशनी हवेली के प्रांगण में मुझे दादा-दादी, रिश्तेदा, चाचा-ताऊओं का प्यार मिला। कलात्मक तथा लोक भित्ति-चित्रों से सरोबार यह हवेली गाँव के लम्बरदार और एक मजबूत किसान के रूप में सर्वपरिचित रहे मेरे दादा चै॰ रामजीलाल नेहरा ने बनवाई थी। मेरे पिता श्री सरजीत सिंह की आरम्भिक शिक्षा हिसार व रोहतक तथा कानून की शिक्षा दिल्ली में सम्पन्न हुई। कानून की उपाधि लेकर इन्होंने हिसार जिले की अदालत में वकालत करते-करते हरियाणा की राजनीति में सक्रिय रहकर जन-सेवा की। मेरी माताजी श्रीमती सतभोमा ने एक सफल गृहणी तथा उच्च आदर्श वाली महिला के रूप में सभी बच्चों को उच्च आदर्शों का पाठ पढ़ाया। हमारे पूर्वजों, माता-पिता, चाचा-ताऊओं तथा परिवार के अन्य सदस्यों ने हमारे घर के माहौल में शिक्षा की ज्योति जगाई। इसी वातावरण में मैंने तथा मेरे अन्य चार भाईयों ने भारतीय लोक सेवाओं की परीक्षाएँ पास करके देश के महत्वपूर्ण पदों पर कार्य किया है।

मैंने अपने जीवन के शुरुआती पेशे के रूप में पहले भारतीय सेना तथा बाद में ’’भारतीय पुलिस सेवा’’ के तहत हरियाणा कैडर में रहकर इस प्रदेश तथा देश के जन-कल्याण हेतु अनुषासन में रहकर कार्य किया है। मेरी शिक्षा तथा पेशेवर पुलिस सेवाओं के अनेक अवकाश के दिनों में मैंने अपने जीवन के अनेकों सांस्कृतिक लम्हें अपने गाँव लहरियाँ के ग्रामीण आंचल में बिताए हैं। इन बिताए गए लम्हों ने मेरी लोक-संस्कृति के प्रति बौद्धिक प्यास को एक ऊर्जा दी और इस कड़ी में मैंने अपने पुलिस के व्यवसायिक जीवन में प्राचीन एवं ऐतिहासिक पुलिस भवनों का सौन्दर्य पुनः स्थापित किया। ये पुलिस भवन थानों के रूप में प्रयोग किए जाते रहे है, जिनकी वास्तु ब्रिटिश-काल की है।

ग्रामीण आंचल की ऐतिहासिक धरोहरें आपसी भाई-चारे में गुथी हुई है, इसमें सभी वर्ग, जातियाँ, हमारे कुओं की परंपराएँ, धोती-कुर्ता और पगड़ी व साफ़े, हस्तकलाएँ, चैपालों व परस की संस्कृति आदि की अपनी बानगी रही है। इस विरासत के प्रति मेरी कलात्मक संवेदनाएँ बनने के कारण ही मैंने अपने गाँव के ऐतिहासिक कुएँ का जीर्णोद्धार करके इस कुएं के मूल कलात्मक रूप को लौटाने का एक सफल प्रयास किया। मेरे जीवन का यही सशक्त प्रयास रहेगा कि हमारी मूल्यवान परंपराओं को संरक्षित करते हुये नई पीढ़ी को इन प्रयासों में भागीदार बनाएं ताकि हमारी मनोहारी धरोहरें जीवित रहें और यह परंपरा आगे चलती रहे। यह वैबसाईट सतग्राम डोट कॉम इसी दिशा में किये गये कार्यों से जनमानस को परिचित कराने और इस महत्वपूर्ण कार्य में साथ जोड़ने का प्रयास है – जय हिन्द।

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